राजस्थान की प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति
- प्राचीन स्थलों के उत्खनन से पूर्व राजस्थान के इतिहास के बारे में जानकारी मौर्य काल तक ही उपलब्ध थी क्योंकि यहां के इतिहास के बारे में लिखित प्रारंभिक प्रमाण अशोक के शिलालेख आदि उपलब्ध थे |
- सन 1920-21 में हड़प्पा तथा 1922-23 में मोहनजोदड़ो के खनन से भारत में 2520 ई.पू. की सैन्धव सभ्यता का ज्ञान हुआ |
- सिंधु सभ्यता के लोगों की लिपि अभी तक नहीं पढ़ी जा सकी है| अतः उत्खनन में प्राप्त पुरातात्विक सामग्री के आधार पर भी हमें इस सभ्यता के बारे में जानकारी मिल पाई है|
- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश में पुरातात्विक स्थलों की खोज का काम शुरू हुआ और रोपड़, लोथल, रंगपुर ,कालीबंगा आदि प्राचीन स्थलों की खुदाई से तत्कालीन सभ्यताओं का पता चला |
- नागौर जिले में लूनी नदी बेसिन में जायल, डीडवाना आदि स्थानों पर पुरापाषाण कालीन उपकरण प्राप्त हुए हैं | राजस्थान के बूढ़ा पुष्कर में उत्तर पूरा पाषाण कालीन अवशेष पाए गए हैं|
- नवपाषाण युगीन संस्कृति के कोई प्रमाण राजस्थान में नहीं मिले हैं|
कालीबंगा (हनुमानगढ़)
- सर्वप्रथम खोजकर्ता- श्री ए.घोष (1952 ईस्वी)
- 1961 से 1969 तक उत्खनन कार्य श्री ब्रजवासी लाल, श्री बाल कृष्ण थापर, एम. डी. खरे, के एम श्रीवास्तव, एस पी श्रीवास्तव तथा SP जैन के निर्देशन में हुआ|
- हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो के समकक्ष एवं समकालीन कालीबंगा सभ्यता के अवशेष दृषद्वती तथा सरस्वती नदी की घाटी में मिले हैं|
- कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ काली चूड़ियां है |
- कालीबंगा में घग्गर नदी के छोटे पश्चिमी टीले व बड़े पूर्वी टीले की खुदाई की गई है |
- पूर्व हड़प्पा सभ्यता के अवशेष पश्चिमी टीले के निचले स्तर से मिले हैं जिसमें जूते हुए खेत के अवशेष महत्वपूर्ण है |
- विश्व में सर्वप्रथम लकड़ी की नाली के अवशेष कालीबंगा में मिले |
- कालीबंगा से स्वास्तिक चिन्ह भी मिले हैं |
- यहां कांसे के उपकरण भी मिले हैं जिस कारण इस सभ्यता को कांस्य युगीन सभ्यता भी कहते हैं |
- कालीबंगा में भारी मात्रा में मृदभांड, मानव का मिट्टी से बना सिर तथा बेलनाकार मुद्रा मिली है | कालीबंगा की एक मुद्रा पर बाघ का अंकन है, जबकि सिंधु क्षेत्र में अभी बाघ नहीं मिलता |
- कालीबंगा में मिले अवशेषों पारण सेंधव लिपि से मिलती-जुलती लिपि मिली है | यह लिपि दाएं से बाएं की ओर लिखी गई है |
रंगमहल (हनुमानगढ़)
- हनुमानगढ़ जिले के इस स्थान पर 1952 में किले की खुदाई का कार्य प्रारंभ किया गया |
- इस स्थल की खुदाई से मिट्टी के बर्तन, पूजा के बर्तन, मिट्टी की मूर्तियां, विभिन्न धातुओं के उपकरण, आभूषण तथा तांबे की मुद्राएं प्राप्त हुई है |
आहड (उदयपुर)
- खोजकर्ता– रतन चंद्र अग्रवाल ( 1954), तत्पश्चात 1961-62 में हंसमुख धीरज लाल सांगलिया, बी एम मिश्रा के नेतृत्व में विस्तृत खुदाई की गई |
- आहड़ का प्राचीन नाम ताम्रवती नगरी था |
- यह स्थान प्राचीन समय में तांबे के औजार बनाने का प्रमुख केंद्र था | यहां से खुदाई में तांबे की कई वस्तुएं मिली है |
- आहड़ में खुदाई से काले हुए लाल रंग के मृदभांड मिले हैं, जिनको उल्टी तपाई शैली से पकाया जाता था |
- आहड़ सभ्यता के संपूर्ण काल को दो भागों में विभाजित किया गया है- प्रथम कालखंड को ताम्र युगीन आहड सभ्यता का द्योतक माना जाता है तथा द्वितीय कालखंड को लोह सभ्यता का द्योतक माना गया है |
- आहड़ सभ्यता बनास संस्कृति से संबंधित स्थल है |
बालाथल (उदयपुर)
- यह तहसील वल्लभनगर जिला उदयपुर में स्थित है|
- ताम्र पाषाण युगीन सभ्यता की खोज बी एल मिश्र के नेतृत्व में की गई |
- मार्च 1993 में यहां गुजराती टीले के उत्खनन से 3000 ई. पूर्व से 2500 ई. पूर्व की ताम्र पाषाण युग इन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं|
- इस स्थान पर उत्खनन में कर्णफूल, हार, मृण्मूर्तियां, तथा तांबे के आभूषण प्राप्त हुए हैं |
गणेश्वर (सीकर)
- ताम्र युगीन सभ्यताओं की जननी के नाम से विख्यात |
- कांतली नदी के उद्गम स्थल पर सीकर जिले के नीम का थाना तहसील में स्थित एक टीले के उत्खनन से ताम्र युगीन संस्कृति की जानकारी प्राप्त हुई है |
- गणेश्वर सभ्यता प्राक हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन है तथा ताम्र युगीन सभ्यताओं से प्राचीन है|
- इस सभ्यता में तांबे के अधिकांश उपकरण मिलने का प्रमुख कारण खेतड़ी तांबा भंडार के निकट स्थित होना है|
बैराठ (जयपुर)
- विराट नगर नाम से प्रसिद्ध स्थल से मोर्य कालीन एवं मध्य कालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं|
- प्राचीन काल में विराट नगर( बैराठ) मत्स्य जनपद की राजधानी थी|
- यहां से शंख लिपि के प्रचुर मात्रा में प्रमाण मिले हैं|
- बीजक की पहाड़ी पर स्थित इस स्थान पर 1999 में खुदाई के दौरान एक गोल बोद्ध मंदिर के अवशेष मिले हैं|
- इस सभ्यता के उत्खनन में मिले मृदभांड पर विभिन्न प्रकार के आलंकारिक पात्र जैसे पहिए का त्रिरत्न, स्वास्तिक आदि प्रमुख हैं|
बागौर (भीलवाड़ा)
- डॉक्टर वीरेंद्र नाथ मिश्र के नेतृत्व में इस स्थल का उत्खनन कार्य 1967 में किया गया|
- यह स्थान कोठारी नदी से 25 किलोमीटर दूर भीलवाड़ा जिले में स्थित हैं|
- इस स्थान की खुदाई से पाषाण युग के उपकरणों, हथौडे, गोपन की गोलियां, छेद करने वाले पत्थर तथा गाय, बैल, सूअर, गीदड़ आदि की हड्डियां प्राप्त हुई है|
अन्य स्थल
- ईसवाल (उदयपुर) इस स्थान पर खुदाई के दौरान लोहे कालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं|
- सुनारी (झुंझुनू) इस स्थल से लोहा प्राप्त करने की प्राचीनतम पटिया प्राप्त हुई है|
- जोधपूरा (जयपुर) यहां पर अयस्क से लोहा प्राप्त करने की प्राचीनतम भट्टी मिली है|
- डडीकर (अलवर) पांच से सात हजार वर्ष पुराने शैल चित्र मिले हैं|
- गरडदा (बूंदी) छाजा नदी के किनारे स्थित इस स्थान पर पहली बर्ड राइटर रॉक पेंटिंग शैलचित्र मिली है| यह देश में प्रथम पुरातत्व महत्व की पेंटिंग है|
- कोटडा (झालावाड़) इस स्थान पर स्थित दीपक शोध संस्थान द्वारा सातवीं से बारहवीं शताब्दी के मध्य के पूरा अवशेषों की खोज की गई है |
- सोंथी (बीकानेर) कालीबंगा प्रथम के नाम से विख्यात अमलानंद घोष के नेतृत्व में 1953 में सभ्यता की खुदाई की गई|
- पिंड पाडलिया( चित्तौड़गढ़), कुराडा( नागौर), सांभरिया एवं पुगल( बीकानेर), नंदलालपुरा( सांभर), बूढ़ा पुष्कर( अजमेर), नोह( भरतपुर), रैढ़ व नैनवा(टोंक), नगरी( चित्तौड़गढ़) ,भीनमाल (जालौर) आदि स्थानों से प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति के अवशेष मिले हैं|