राजस्थान की मिट्टियां (Soils of Rajasthan)
राजस्थान में निम्न प्रकार की मिट्टियां पाई जाती हैं-
बलुई/रेतीली मिट्टी
- राजस्थान के सर्वाधिक क्षेत्र में पाई जाने वाली मिट्टी है।
- यह मिट्टी रेत के टीलों (धोरों) के रूप में पश्चिमी राजस्थान के अधिकांश क्षेत्रों जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, जोधपुर, नागौर तथा चुरू जिलों में पाई जाती है।
- इस मिट्टी का कण मोटा होने के कारण जल शीघ्र ही विलीन हो जाता है। इसलिए वर्षा का जल कम समय के लिए नमी बना पाता है और सिंचाई का कोई विशेष लाभ नहीं होता है।
- इस मिट्टी में नाइट्रोजन, कार्बनिक लवणों, ह्यूमस एवं खनिज लवणों की कमी पाई जाती है, परन्तु इसमें कैल्शियम लवणों की अधिकता रहती हैं।
- ऐसे क्षेत्रों में बाजरा, मोठ, मूंग आदि की फसलें खरीफ के मौसम में पैदा की जाती है।
- कम लवणीयता में ग्वार वायदा ढैंचा की फसलें बोई जाती है।
जलोढ या कछारी मिट्टी
- जलोढ/कछारी/दोमट/कांप को ब्लैक कॉटन सायल भी कहा जाता है।
- जलोढ मिट्टी नदियों के जल द्वारा बहाकर लाई गई मिट्टी होती है। इसका रंग पीला होता है।
- इसमें नाइट्रोजन, कार्बनिक लवण तथा ह्यूमस पर्याप्त मात्रा में होते हैं।
- यह मिट्टी बहुत उपजाऊ होती है तथा इसमें नमी बहुत समय तक रहती हैं
- इस मिट्टी में जिंक, फास्फोरस तथा कैल्शियम लवणों की कमी होती है।
- यह मिट्टी अलवर, जयपुर, भरतपुर, अजमेर, टोंक,सवाई माधोपुर, धौलपुर, कोटा आदि जिलों में पाई जाती है।
- यह मिट्टी गेंहू, चावल, कपास व तंबाकू की फसल के लिए उपयोगी है।
लाल दोमट मिट्टी
- लौह तत्व की अधिकता के कारण इसका रंग लाल होता है।
- यह बारीक कणों तथा नमी धारण करने वाली मिट्टी है।
- प्राचीन स्फटकीय एवं कायान्तरित चट्टानों से निर्मित इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं केल्शियम लवणों की कमी तथा लौह तत्वों एवं पौटाश की अधिकता रहती है।
- यह मिट्टी विशेष रूप से मक्के के उत्पादन हेतु उपयुक्त है, इसके अलावा कपास, गेंहू,जो,चना आदि की फसलें बोई जाती है।
- यह मिट्टी राजस्थान के डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर और चितौड़गढ़ जिलों में पाई जाती है।
काली मिट्टी
- यह मिट्टी राज्य के दक्षिणी- पूर्वी भाग बारां, कोटा, बूंदी, झालावाड़ जिले एवं रावतभाटा-भैंसरोड़गढ (चितौड़गढ़) में पाई जाती है।
- इसमें बारीक कण, नमी धारण की उच्च क्षमता होती है।
- इसमें फास्फोरस, नाइट्रोजन एवं जैविक पदार्थों (ह्यूमस) की कमी तथा केल्शियम एवं पोटाश पदार्थों की अधिकता रहती है।
भूरी मिट्टी
- इस प्रकार की मिट्टी टोंक, स्वामी माधोपुर, बूंदी, भीलवाड़ा, उदयपुर और चितौड़गढ़ जिलों में पाई जाती है।
- भूरी मिट्टी का जमाव विशेषतः अरावली के पूर्वी भागों में बनास व उसकी सहायता नदियों के क्षेत्र में पाया जाता है।
- इस मिट्टी में नाइट्रोजन व फास्फोरस लवणों का अभाव होता है, इसलिए इन लवणों से युक्त कृत्रिम खाद देने पर अच्छी फसलों का उत्पादन किया जा सकता है।
- इस मिट्टी में खरीफ की फसलें बिना सिंचाई के तथा रबी की फसलें सिंचाई के द्वारा पैदा की जा सकती है।
सिरोजम मिट्टी
- इसका रंग पीला-भूरा होता है।
- मिट्टी के कण मध्यम मोटाई के होते हैं।
- इसमें नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थों की कमी होने के कारण उर्वरा शक्ति कमजोर होती है।
- इस मिट्टी को अरावली के पश्चिम में रेत के छोटे टीलों वाले क्षेत्रों में पाई जाने के कारण धूसर मरुस्थलीय मिट्टी भी कहा जाता है।
- यह मिट्टी पाली, नागौर, अजमेर व जयपुर जिलों में पाई जाती है।
पर्वतीय मिट्टी
- यह मिट्टी अरावली पर्वत के नीचे के प्रदेशों में पाई जाती है।
- यह मिट्टी सिरोही, उदयपुर, पाली, अजमेर और अलवर जिलों के पहाड़ी भागों में पाई जाती है।
- इस मिट्टी का रंग लाल से लेकर पीला, भूरा रंग होता है।
- यह मिट्टी पहाड़ी ढलानों पर होती है इसलिए मिट्टी की गहराई कम होने के कारण खेती नहीं की जा सकती है। बल्कि जंगल लगाए जा सकते हैं।
लवणीय (क्षारीय) मिट्टी
- वह मिट्टी जिसकी भौतिक एवं रासायनिक अवस्था सोडियम की अधिक मात्रा के कारण बहुत अधिक प्रभावित होती है, क्षारीय मिट्टी कहलाती हैं।
- लवणीय क्षारीय मिट्टी को भूरा ऊसर,रेहयुक्त ऊसर या रेहीली ऊसर नाम से भी जाना जाता है।
- इसमें क्षारीय लवणों की अधिकता होने के कारण पूर्णतः अनुपजाऊ होती है।
- यह मिट्टी राज्य के श्रीगंगानगर, बाड़मेर एवं जालौर जिलों में पाई जाती है।
- मिट्टी की लवणीयता के कारण- *मिट्टी में सोडियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम आदि की अधिकता। * खारे पानी से सिंचाई, उच्च भू-जल स्तर, कठोर परत का बनना।
- इस मिट्टी को सुधारने के लिए गोबर का खाद, ग्वार या ढैंचा की फसलें तथा जिप्सम का प्रयोग किया जाता है।
- लवणीय व क्षारीय मिट्टियों वाले क्षेत्रों में अमोनियम फास्फेट का उपयोग अधिक उपयुक्त रहता है।
- जिप्सम – मिट्टी में खारापन या क्षारीयता की समस्या समाधान हेतु इसका प्रयोग किया जाता है।
मृदा अपरदन
- मृदा का स्थानांतरण बहते हुए जल, हवा अथवा हिम के साथ होता है- मिट्टी की ऊपरी सतह पर से उपजाऊ मृदा का स्थानांतरित हो जाना मिट्टी का अपरदन या मिट्टी का कटाव कहलाता है।
- अवनालिका अपरदन/कन्दरा समस्या – भारी बारिश के कारण जल द्वारा मिट्टी का कटाव जिससे गहरी घाटी तथा नाले बन जाते हैं।
- इस समस्या से कोटा (सर्वाधिक), बूंदी, धौलपुर, भरतपुर, जयपुर तथा सवाई माधोपुर जिले ग्रस्त हैं।
- परतदार अपरदन- वायु द्वारा मिट्टी की ऊपरी परत का उड़ाकर ले जाना।
- मृदा अपरदन – मुख्यत: पशुओं द्वारा अत्यधिक चराई, अवैज्ञानिक ढंग से कृषि, वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण होता है।
- सेम समस्या/जलाधिक्य – नहरों से सिंचित क्षेत्रों में यह समस्या पाई जाती है।
- देश की व्यर्थ भूमि का 20% भाग राजस्थान में पाया जाता है, क्षेत्रफल की दृष्टि से सर्वाधिक व्यर्थ भूमि जैसलमेर (37.30%) में है।
- राजसमंद- उपलब्ध क्षेत्र के प्रतिशत की दृष्टि से यह ज़िला सर्वाधिक व्यर्थ भूमि क्षेत्र में आता है।
राजस्थान की मिट्टियां