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राजस्थान में कृषि एवं फसलें

राजस्थान में कृषि एवं फसलें |

राजस्थान में कृषि एवं फसलें (Agriculture and Crops in Rajasthan)
  • स्वतंत्रता से पूर्व राजस्थान की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि था।
  • राजस्थान की कुल कार्यशील जनसंख्या का लगभग 70 प्रतिशत रोजगार की दृष्टि से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कृषि एवं पशुपालन पर निर्भर है।
  • राजस्थान राज्य की सम्पूर्ण आय का लगभग 52 प्रतिशत कृषि एवं इससे संबंधित क्षेत्रों से होती है।
  • राजस्थान में भारत के कुल कृषिगत क्षेत्रफल का 10.2 प्रतिशत है।
  • राजस्थान के कुल कृषिगत क्षेत्रफल का 2/3 भाग खरीफ के मौसम में बोया जाता है।
  • राजस्थान के कुल कृषि क्षेत्रफल का लगभग 32.4 प्रतिशत भाग सिंचित है।

खाद्यान्न फसलें (Cereals)

  • राजस्थान में खाद्यान्नों में गेहूं, जौ, चावल, मक्का, बाजरा, ज्वार, रबी एवं खरीफ की दलहन फसलें शामिल हैं।

1. गेहूं (Wheat)

  • राजस्थान का गेहूं के उत्पादन में भारत में चौथा स्थान है। भारत के कुल गेहूं उत्पादन का 8 प्रतिशत राज्य में होता है।
  • राजस्थान में गेहूं सर्वाधिक मात्रा में एवं सर्वाधिक सिंचित क्षेत्र में उत्पादित होने वाली फसल है जो रबी की फसल है।
  • राज्य में सर्वाधिक क्षेत्र में खाद्यान्न फसल के रूप में गेहूं बोया जाता है।
  • गेहूं को बोये जाने के समय तापमान कम से कम 8° से 10° सें. तक होना चाहिए तथा पकने के समय तापमान 15° से 20° सें. तक होना चाहिए।
  • 50 सेमी. से 100 सेमी. के बीच वर्षा की आवश्यकता होती है।
  • राजस्थान में साधारण गेहूं (ट्रीटीकम) एवं मेकरोनी गेहूं (लाल गेहूं) सर्वाधिक पैदा होता है।
  • गेहूं उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र पूर्वी एवं दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान के जयपुर, अलवर, कोटा, गंगानगर, हनुमानगढ़ और सवाई माधोपुर जिले हैं।
  • राजस्थान में सर्वाधिक गेहूं गंगानगर जिले में उत्पादित होता है इसलिए गंगानगर जिला अन्न का भण्डार कहलाता है।
  • नाइट्रोजन युक्त दोमट मिट्टी, महीन काँप मिट्टी व चीका प्रधान मिट्टी गेहूं उत्पादन हेतु उपयुक्त होती है। मिट्टी pH मान 5 से 7.5 के मध्य होना चाहिए।
  • राजस्थान में दुर्गापुरा-65, कल्याण सोना, मैक्सिकन, सोनेरा, शरबती, कोहिनूर, सोनालिका, गंगा सुनहरी, मंगला, कार्निया-65, लाल बहादुर, चम्बल-65, राजस्थान-3077 आदि किस्में बोई जाती हैं।
  • गेहूं में छाछ्या, करजवा, रतुआ, चेपा रोग पाए जाते हैं
  • इण्डिया मिक्स- गेहूं, मक्का व सोयाबीन का मिश्रित आटा।
  • गौचणी- गेहूं, जौ, चना का मिश्रित आटा।

2. जौ(Barley)-

  • राजस्थान में जौ उत्पादन क्षेत्रफल लगभग 2.5 लाख हेक्टेयर है।
  • जौ उत्पादन में राजस्थान का उत्तर प्रदेश के बाद दूसरा स्थान है।
  • भारत के कुल उत्पादन का 1/4 भाग राजस्थान में पैदा होता है।
  • जौ शीतोष्ण जलवायु का पौधा है तथा रबी की फसल है।
  • जौ की बुवाई के समय लगभग 10° सें. तापमान की आवश्यकता है तथा काटते समय 20° से 22° सेन्टीग्रेड तापमान होना चाहिए।
  • जौ के लिए शुष्क और बालू मिश्रित काँप मिट्टी उपयुक्त रहती है।
  • जौ की प्रमुख किस्में ज्योति, RS-6, राजकिरण, R.D.- 2503, RS-6, मोल्वा आदि है।
  • राजस्थान में प्रमुख जौ उत्पादन जिले जयपुर (सर्वाधिक), उदयपुर, अलवर, भीलवाड़ा व अजमेर हैं।
  • जौ का उपयोग मिसी रोटी बनाने, मधुमेह रोगी के उपचार, शराब व बीयर बनाने, माल्ट उद्योग में किया जाता है।

3. बाजरा (Bajra)-

  • बाजरा का जन्म अफ्रीका को माना जाता है।
  • विश्व का सर्वाधिक बाजरा भारत में पैदा होता है।
  • बाजरे के उत्पादन एवं क्षेत्रफल में राजस्थान का भारत में प्रथम स्थान है।
  • राजस्थान देश का लगभग एक तिहाई बाजरा उत्पादित करता है।
  • बाजरा राजस्थान में सर्वाधिक क्षेत्र पर बोई जाने वाली खरीफ की फसल है।
  • बाजरा के लिए शुष्क जलवायु उपयुक्त रहती है। बाजरे की बुवाई मई, जून या जुलाई माह में होती है।
  • बाजरे की बुवाई करते समय तापमान 35° से 40° सेन्टीग्रेड तक होना चाहिए।
  • बाजरे के लिए 50 सेमी. से कम वर्षा उपयुक्त रहती है। बाजरा बलुई, बंजर, मरुस्थलीय तथा अर्द्ध काँपीय मिट्टी में पैदा होता है।
  • बाजरा की प्रमुख किस्में ICTP-8203, WCC-75, राजस्थान-171, RHB-30, RHB-58, RHB-911, राजस्थान बाजरा चरी-2 है।
  • बाजरा को जोगिया, ग्रीन ईयर, कण्डुआ, सूखा रोग नुकसान पहुँचाते है।
  • बाजरे की फसल के गोंद (अरकट) लगने से यह ज़हरीला हो जाता है जो गर्भपात और उल्टी-दस्त का कारण बन जाता है।
  • बाजरा के प्रमुख उत्पादक जिले बाड़मेर, जोधपुर, नागौर, जयपुर, बीकानेर, करौली, जैसलमेर आदि है।
  • केन्द्र सरकार द्वारा अखिल भारतीय समन्वित बाजरा सुधार परियोजना व मिलेट डायरेक्टोरेट को क्रमशः पूना व चैन्नई से जोधपुर व जयपुर स्थानांतरित किया गया है। दो नए केन्द्र बीकानेर एवं जोधपुर में स्थापित किए गए हैं।

3. मक्का (Maize)

  • भारत के कुल मक्का उत्पादन का 1/8 भाग राजस्थान में उत्पादित होता है।
  • मक्का मुख्यत: खरीफ की फसल है।
  • उष्ण एवं आर्द्र जलवायु मक्का के उपयुक्त रहती है।
  • मक्का की बुवाई करते समय औसत तापमान 21° से 27° सेन्टीग्रेड तक होना चाहिए।
  • मक्का के लिए 50 सेमी. से 80 सेमी. तक वर्षा की आवश्यकता रहती है।
  • मक्का के लिए नाइट्रोजन व जीवांशयुक्त मिट्टी, दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त रहती है।
  • राजस्थान में गेहूं, चावल, ज्वार के बाद खाद्यान्न में मक्का का चौथा स्थान है।
  • मक्का की प्रमुख किस्में माही कंचन, माही धवल, सविता (संकर किस्म), नवजोत, गंगा-2, गंगा-11, अगेती-76, किरण आदि है।
  • राजस्थान में मक्का के प्रमुख उत्पादक जिले उदयपुर (सर्वाधिक), चितौड़गढ़, भीलवाड़ा व बांसवाड़ा है।
  • मक्का की हरी पत्तियों से साईलेज चारा बनाया जाता है।
  • कृषि विशेषज्ञों के अनुसार मक्के के पौधे का 80 प्रतिशत विकास रात के समय होता है।
  • बांसवाड़ा जिले के बोरवर गाँव में कृषि अनुसंधान केन्द्र संचालित है। दक्षिणी राजस्थान में रबी के मौसम में भी मक्का की खेती को किसानों में लोकप्रिय बनाने का श्रेय बांसवाड़ा कृषि अनुसंधान केन्द्र को दिया जाता हैै। इस केन्द्र ने मक्का की संयुक्त किस्में माही कंचन एवं माही धवल विकसित की है।
  • मक्का के दानों से मांडी (स्टार्च), ग्लूकोज तथा एल्कोहल तैयार किया जाता है।
  • मक्का मेवाड़ क्षेत्र का प्रमुख खाद्यान्न हैं।

 5. चावल (Rice)-

  • चावल भारत में सर्वाधिक मात्रा में उत्पादित होने वाला खाद्यान्न है। भारत में सर्वाधिक चावल उत्पादन पश्चिम बंगाल में होता है।
  • चावल उष्ण कटिबंधीय पौधा है। इसके लिए  20° से 27° सेन्टीग्रेड तक तापमान एवं 125 से 200 सेमी. वार्षिक वर्षा की आवश्यकता रहती हैं।
  • चावल के लिए काँपीय, दोमट, चिकनी मिट्टी उपयुक्त रहती है।
  • वर्तमान में राजस्थान में जापानी पद्धति से चावल की खेती की जाती है।
  • चावल की प्रमुख किस्में कावेरी, जया, परमल, चम्बल, गरडा़बासमती, NP-130, BK-190, T-29, सफेदा एवं लकडा़, माही सुगंधा (कृषि अनुसंधान केन्द्र, बांसवाड़ा द्वारा विकसित) है।
  • राजस्थान में प्रमुख चावल उत्पादक जिले बांसवाड़ा, बूंदी, हनुमानगढ़, बारां, कोटा, उदयपुर और गंगानगर हैं।
  • राजस्थान का लगभग आधा चावल उत्पादन केवल दो जिलों बांसवाड़ा व हनुमानगढ़ में होता है।
  • राजस्थान में चावल का प्रति हैक्टेयर उत्पादन सर्वाधिक हनुमानगढ़ जिले में होता है।

6. ज्वार (Jowar)-

  • ज्वार उष्ण कटिबंधीय खरीफ की फसल है तथा इसके लिए औसत तापमान 20° से 32° सेन्टीग्रेड तथा 50 से 60 सेमी. वार्षिक वर्षा उपयुक्त रहती है।
  • ज्वार की बुवाई हेतु दोमट मिट्टी अथवा गहरी या मध्य काली मिट्टी उपयुक्त रहती है।
  • राजस्थान में ज्वार की दो प्रमुख किस्में- राजस्थान चरी-1 एवं चरी-2 चारे के लिए तैयार की गई है।
  • राजस्थान में प्रमुख ज्वार उत्पादक जिले अजमेर, उदयपुर, भीलवाड़ा, भरतपुर, कोटा, बूंदी, झालावाड़, सवाई माधोपुर, अलवर, जयपुर व टोंक हैं।
  • ज्वार को सोरगम व गरीब की रोटी भी कहा जाता है।
  • राजस्थान में ज्वार का क्षेत्रफल देश के कुल क्षेत्रफल का 10 प्रतिशत है।

 दलहन (Pulses)-

राज्य में रबी मौसम में चना, मटर व मसूर तथा खरीफ के मौसम में मोठ, उड़द, मूंग, चवला व अरहर प्रमुख दलहनी फसलें हैं।

राजस्थान में दलहनी फसलें 18 प्रतिशत क्षेत्रफल पर बोई जाती है।

दलहन का उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से 1974-75 में केन्द्र संचालित दलहन विकास योजना शुरू की गई।

राजस्थान में दालों का सर्वाधिक उत्पादन जोधपुर जिले में होता है।

देश में दलहन उत्पादन की दृष्टि से राजस्थान का छठा स्थान है।

राजस्थान में सर्वाधिक अरहर व तुअर- बांसवाड़ा, मूंग- नागौर, मोठ- बाड़मेर, उड़द- चितौड़गढ़, चवला- सीकर, मसूर- भरतपुर तथा मटर-पनीर जयपुर जिले में उत्पादित होती है।

1. चना-

  • भारत में चने के कुल क्षेत्रफल का 22.78 प्रतिशत क्षेत्र राजस्थान में हैं।
  • उत्तरप्रदेश के बाद चना उत्पादक में राजस्थान का दूसरा स्थान है।
  • क्षेत्रफल की दृष्टि से बाजरा, गेहूं के बाद चने को तीसरा स्थान प्राप्त है।
  • राजस्थान में राष्ट्रीय औसत से चने का उत्पादन प्रति हैक्टेयर अधिक होता है जबकि अन्य लगभग सभी फसलों का औसत उत्पादन राष्ट्रीय औसत से कम होता है।
  • राजस्थान में कुल दलहनी फसलों में चने का उत्पादन सर्वाधिक होता है।
  • रबी की दलहनी फसलों में राज्य में सर्वाधिक क्षेत्रफल पर चना बोया जाता है
  • चना की बुवाई के समय तापमान लगभग 20° सेन्टीग्रेड एवं काटते समय तापमान 30° से 35° सेन्टीग्रेड तक होना चाहिए।
  • चना के लिए हल्की बलुई मिट्टी उपयुक्त रहती है तथा 50 से 85 सेमी. वार्षिक वर्षा की आवश्यकता रहती है।
  • चना की प्रमुख किस्मेंRSG-2, BJ-209, GNG-16, RS-10, वरदान, सम्राट, काबुली आदि है।
  • राजस्थान में प्रमुख चना उत्पादक जिले गंगानगर, बीकानेर, सीकर, चुरू, हनुमानगढ़ आदि है।
  • चना का उपयोग दाल बनाने, जानवरों को खिलाने तथा माल्ट उद्योग में किया जाता है।
  • गेहूं व जौ के साथ चना बोना स्थानीय भाषा में गोचनी या बेझड़ कहलाता है।

2. मोठ-

खरीफ की दलहन फसलों में मोठ सर्वाधिक भू-भाग पर बोया जाता है।

मोठ के उत्पादन में भारत में राजस्थान का पहला स्थान है।

दलहनी फसलों में सर्वाधिक सूखा सहन करने वाली फसल मोठ है।

3. उड़द-

उड़द उष्ण कटिबंधीय पौधा है। इसके लिए दोमट तथा भारी दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है।

व्यापारिक फसलें (Commercial Crops)

1. गन्ना ((Sugarcane)-

  • गन्ना एक प्रमुख व्यापारिक फसल है, यह मूल रूप से भारतीय पौधा है।
  • विश्व में भारत का गन्ना उत्पादन में प्रथम स्थान है।
  • गन्ने की फसल एक बार बुवाई करने पर तीन साल तक उत्पादन देती है।
  • भारत में सर्वाधिक गन्ना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश (देश का 40 प्रतिशत) है जबकि राजस्थान में भारत के कुल उत्पादन का लगभग 0.04 प्रतिशत होता है।
  • गन्ने की खेती के लिए 15° से 24° सेन्टीग्रेट तापमान तथा 100 से 200 सेमी. वार्षिक वर्षा की आवश्यकता रहती है।
  • राजस्थान में गन्ना बूंदी (सर्वाधिक), उदयपुर, चितौड़गढ़ व गंगानगर जिलों में उत्पादित होता है।
  • गन्ने में लाल सड़न रोग, पाइरिला, कण्डवा, रेडक्रास आदि रोग लग जाते हैं।

2. कपास ( Cotton)-

  • कपास मूलतः भारतीय पौधा है। इसका विकास सिंधु घाटी सभ्यता में हुआ।
  • राजस्थान का कपास के उत्पादन में देश में 8वां स्थान है। कपास उत्पादन की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है।
  • कपास के लिए 20° से 30° सेन्टीग्रेट तापमान, 50 से 100 सेमी. वार्षिक वर्षा तथा नमी युक्त चिकनी मिट्टी या काली मिट्टी उपयुक्त रहती है।
  • राजस्थान में कपास को ग्रामीण भाषा में बणीया कहा जाता है। इसे सफेद सोना भी कहा जाता है।
  • कपास की बुवाई मई-जून के महीने में की जाती है।
  • ज्यादा ठंड से कपास की फसल को बालबीविल कीड़ा नुकसान पहुँचाता है।इसकी रोग प्रतिरोधक फसल भिण्डी होती है।
  • राजस्थान में कपास गंगानगर (सर्वाधिक), हनुमानगढ़, अजमेर, भीलवाड़ा, झालावाड़, चितौड़गढ़, उदयपुर, पाली, कोटा, बूंदी व झालावाड़ जिलों में उत्पादित होता है।
  • कपास की एक गांठ का वजन 170 किलोग्राम होता है।
  • राज्य में में बोई जाने वाली कपास के विभिन्न प्रकार :- 1. नरमा – श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ में बोयी जाती है। 2.अमेरिकन कपास – लम्बे रेशे वाली वाली कपास गंगानगर व हनुमानगढ़ जिलों में सर्वाधिक होती है। 3.मालवी कपास- यह कपास कोटा, बूंदी, झालावाड़ व टोंक जिलों में बोयी जाती है। 4.देशी कपास- यह कपास उदयपुर, चितौड़गढ़ व बांसवाड़ा जिलों में सर्वाधिक बोयी जाती है। 3.मरूविकास (Raj.H.H.-16)- राजस्थान में कपास की पहली संकर किस्म। 6.बी.टी. कपास- बेसिलस थ्रेजेन्सिस (विशेष क्रिस्टल प्रोटीन बनाने वाला) का बीज में प्रत्यारोपण। इसमें जैव-अभियांत्रिकी तकनीक से बीज की संरचना में डी.एन.ए. की स्थिति को प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और टाक्सीकेट्स में बदला जाता है।
  • राजस्थान के जैसलमेर व चुरू जिलों में कपास का उत्पादन नहीं होता है।

3. तंबाकू(Tobacco)-

  • तम्बाकू का पौधा भारत में सर्वप्रथम 1508 में पुर्तगालियों द्वारा लाया गया।
  • तम्बाकू के लिए 20° से 35° सेन्टीग्रेड तापमान तथा 50 से 100 सेमी. वार्षिक वर्षा की आवश्यकता रहती है।
  • तम्बाकू एक उष्ण कटिबंधीय पौधा है।
  • राजस्थान में तम्बाकू की दो किस्में प्रमुख हैं- 1.निकोटिना टुबेकम व 2. निकोटिना रास्टिका।
  • राजस्थान में तम्बाकू का सर्वाधिक उत्पादन अलवर जिले में होता है।

4. ग्वार- 

  • ग्वार कपड़ा उद्योग, श्रृंगार, विस्फोटक सामग्री बनाने के काम आता है।
  • ग्वार का उत्पादन बढ़ाने हेतु राजस्थान में दुर्गापुरा (जयपुर) स्थित कृषि अनुसंधान केन्द्र उन्नत किस्में तैयार करता है।
  • सबसे बड़ी ग्वार मण्डी जोधपुर में स्थित है तथा ग्वार गम उद्योग भी जोधपुर में सर्वाधिक है।
  • जोधपुर में ग्वार गम जाँच लैब स्थापित की गई है।

5. खजूर- 

  • खजूर में 70 से 75 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट होता है।
  • खजूर क्षारीयता सहन करने की क्षमता रखता है।
  • खजूर अनुसंधान केन्द्र बीकानेर में स्थित है। वर्तमान में बीकानेर क्षेत्र में खजूर की खेती की जाती है।
  • खजूर की प्रमुख किस्में हिवानी, मेंजुल, अरबी खजूर, बहरी, जाहिंदी आदि हैं।
  • खजूर में लगने वाला प्रमुख रोग ग्रोफियोला है।
  • देश की पहली व एशिया की दूसरी सबसे बड़ी खजूर पौध प्रयोगशाला जोधपुर के चोपासनी में स्थापित की गई है।

5. ईसबगोल(घोड़ा जीरा) –

  • ईसबगोल के प्रमुख उत्पादक जिले जालौर, बाड़मेर, सिरोही, नागौर, पाली तथा जोधपुर हैं।
  • विश्व का लगभग 80 प्रतिशत ईसबगोल भारत में पैदा होता है।
  • भारत का 40 प्रतिशत ईसबगोल जालौर जिले में पैदा होता है।
  • ईसबगोल का उपयोग औषधि निर्माण, कपड़ों की रंगाई छपाई, सौंदर्य प्रसाधन, फाइबर फूड के निर्माण में किया जाता है।
  • मण्डोर (जोधपुर) में स्थित कृषि अनुसंधान केन्द्र में ईसबगोल पर शोध कार्य किया जा रहा है।
  • राजस्थान में औषधीय महत्व की फसलों के होने वाले निर्यात में ईसबगोल का निर्यात सर्वाधिक होता है।
  • आबूरोड में ईसबगोल का कारखाना स्थापित किया गया है।

 7. जीरा- 

  • जीरा रबी की फसल है।
  • जीरे में होने वाले प्रमुख रोग छाछिया, झुलसा, उकटा आदि है।
  • जीरे की प्रमुख किस्में RS-1, SC-43 हैं।
  • जीरा उत्पादन व क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का देश में पहला स्थान है।
  • जीरा मुख्यत: जालौर जिले की भीनमाल, जसवंतपुरा व रानीवाड़ा तहसीलों में पैदा होता है।
  • राजस्थान में जीरे की सबसे बड़ी मंडी भदवासिया (जोधपुर) में स्थित है।

तिलहन (Oil Seeds)

  • तिलहन के उत्पादन में राजस्थान का उत्तर प्रदेश के बाद दूसरा स्थान है।
  • राजस्थान में रबी की तिलहन फसलों में सरसों, राई, तारामीरा व अलसी तथा खरीफ की तिलहन फसलों में मूंगफली, सोयाबीन, तिल व अरंडी प्रमुख हैं।
  • राजस्थान में तिलहन के क्षेत्र में लगातार वृद्धि की प्रवृत्ति है।

1. सरसों- 

  • भारत विश्व में सर्वाधिक सरसों उत्पादन करता है। 
  • राजस्थान को सरसों का प्रदेश कहा जाता है।
  • राजस्थान देश का सर्वाधिक सरसों (30 प्रतिशत) उत्पादन एवं उत्पादकता क्षेत्र वाला राज्य है।
  • तिलहन की रबी फसलों में सर्वाधिक क्षेत्रफल सरसों का है।
  • सरसों के लिए शीत एवं शुष्क जलवायु, 15° से 20° सेन्टीग्रेड तापमान, 75 से 100 सेमी. वार्षिक वर्षा व हल्की चिकनी मिट्टी या दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है।
  • सरसों की प्रमुख किस्में वरुणा (सबसे उन्नत किस्म) , RH-819, RL-1359, बायो-902 तथा पूसा बोल्ड हैं।
  • सरसों में होने वाले प्रमुख रोग चेंपा (मस्टर्ड एसिड), तना गलन रोग, सफेद रौली तथा आल्टरनेरिया झुलसा हैं।
  • पीली क्रांति (पीत क्रांति) प्रमुखत: सरसों की क्रांति है। हरित क्रांति का सर्वाधिक प्रभाव तिलहनों में सरसों पर पड़ा।
  • राजस्थान में सरसों के प्रमुख उत्पादक जिले भरतपुर (सर्वाधिक), अलवर, जयपुर, गंगानगर, धौलपुर व सवाईमाधोपुर हैं।
  • सरसों से तेल निकालने के बाद बचने वाली लुगदी खल कहलाती है।
  • भरतपुर जिले के सेवर नामक स्थान पर आठवीं पंचवर्षीय योजना में 20 अक्टूबर, 1993 को केन्द्रीय सरसों अनुसंधान केन्द्र की स्थापना की गई।
  • राजस्थान की सबसे बड़ी सरसों मंडी सुमेरपुर (पाली) में स्थित है।

2. तिल-

  • तिल मुख्य रूप से खरीफ की फसल है। इसके लिए उष्ण एवं आर्द्र जलवायु उपयुक्त रहती है।
  • तिल के लिए 25° से 35° सेन्टीग्रेड तक तापमान एवं 50 से 100 सेमी. वार्षिक वर्षा की आवश्यकता रहती है।
  • तिल के लिए हल्की बलुई और दोमट मिट्टी जिसमें जीवांश की मात्रा हो उपयुक्त रहती है।
  • तिल के प्रमुख उत्पादक जिले पाली (सर्वाधिक) व नागौर हैं।

3. मूँगफली-

  • मूँगफली के लिए 30° से 35° सेन्टीग्रेट तापमान, 50 से 75 सेमी. वार्षिक वर्षा एवं केल्शियम युक्त मिट्टी, हल्की दोमट मिट्टी या हल्की काली मिट्टी उपयुक्त रहती है।
  • मूँगफली में टिक्का रोग, क्राउनरोट, कालरा, भूँग, सफेद लट आदि रोग लगते हैं।
  • मूँगफली के प्रमुख उत्पादक जिले जयपुर व बीकानेर हैं।
  • मूँगफली उत्पादन के कारण लूणकरणसर (बीकानेर) को राजस्थान का राजकोट कहा जाता है।
  • राजस्थान का देश में मूंगफली उत्पादन की दृष्टि से सातवां स्थान है।

4. सूरजमुखी-

  • सूरजमुखी खरीफ व रबी दोनों मौसम की फसल है।
  • सूरजमुखी के लिए 100 से 120 सेमी. वार्षिक वर्षा व पकने के लिए 135 दिनों की जरूरत रहती है।
  • सूरजमुखी के प्रमुख उत्पादक जिले गंगानगर, झालावाड़, कोटा, जोधपुर व बीकानेर हैं।
  • सूरजमुखी की प्रमुख किस्मेंMSH – 8, EC – 68415 है।

5. सोयाबीन (Glycine Mat)

  • सोयाबीन की फसल के लिए 15° से 34° सेन्टीग्रेड तापमान व 60 से 120 सेमी. वार्षिक वर्षा उपयुक्त रहती है।
  • सोयाबीन विश्व का सबसे सस्ता, सबसे आसान और सबसे अधिक प्रोटीन देने वाला स्त्रोत है।
  • खरीफ तिलहन के अंतर्गत राजस्थान में सर्वाधिक क्षेत्र में सोयाबीन की खेती की जाती है।
  • सोयाबीन के उत्पादन में राजस्थान का देश में चौथा स्थान है
  • सोयाबीन की प्रमुख किस्में T-1, पंजाब-1, मैक्स-13, गौरव, पूसा-16 आदि हैं।

6. अरण्डी-

  • अरण्डी उत्पादन में राजस्थान का देश में तीसरा स्थान है जबकि प्रथम स्थान गुजरात का है।

7. होहोबा-जोजोबा (सायमन्डेसिया चायनेन्सिम) –

  • होहोबा-जोजोबा एक विदेशी पादप है तथा इसे पीला सोना भी कहा जाता है।
  • यह खारे पानी व अधिक गर्मी को सहन करने वाला पौधा है।
  • होहोबा-जोजोबा प्रायः इजरायल, मैक्सिको, कैलिफोर्निया आदि देशों के रेगिस्तानी इलाकों में पाया जाता हैं।
  • राजस्थान में सर्वप्रथम यह पौधा 1965 में काजरी (जोधपुर) में इजरायल से लाया गया।
  • होहोबा-जोजोबा से प्राप्त तेल का उपयोग लुब्रिकेशन के रूप में, प्रसाधन सामग्री व चिपकाने वाले पदार्थों के निर्माण में किया जाता है।
  • एपोर्ज संस्थान द्वारा फतेहपुर (सीकर-70 हैक्टेयर) एवं ढंड (जयपुर-5.45 हैक्टेयर) में होहोबा-जोजोबा फार्म विकसित किए गए हैं।
  • बीकानेर के झज्जर में जोजोबा प्लांटेशन की राज्य की निजी क्षेत्र में सबसे बड़ी परियोजना शुरू की गई है।

8. जैतून –

  • हानिकारक कालेस्ट्रोल को नियंत्रित और कम करने में सहायक जैतून के खाद्य तेल उत्पादन हेतु राजस्थान में जैतून की खेती की जाती है।
  • राजस्थान में जैतून का पौधा इजरायल से लाया गया है।
  • जैतून को अमन का प्रतीक माना जाता है। जैतून की पत्तियां लेकर उड़ान भरता पक्षी संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रतीक चिह्न है।

 पुष्प (फूल) कृषि

  • पुष्कर (अजमेर)- राजस्थान सरकार द्वारा राज्य की प्रथम पुष्क मंडी पुष्कर (अजमेर) में विकसित की गई है। राज्य में दमश्क गुलाब (चैती गुलाब) अर्थात् देशी गुलाब की खेती पुष्कर, अजमेर में होती है। रोज इंडिया नामक गुलाब की विशिष्ट किस्म है।
  • खमनौर (राजसमंद)- यहाँ दमश्क/चैती गुलाब की जाती है। चैती गुलाब का इत्र सर्वश्रेष्ठ होता है।
  • खुशखेड़ा (अलवर)- यहाँ रीको द्वारा पुष्प पार्क स्थापित किया जा रहा है।

 महत्वपूर्ण तथ्य

  • राजस्थान में स्यालू खरीफ) की खेती वह खेती होती है जिसमें आषाढ़ में मक्का, बाजरा आदि की बुवाई कर आसोज (आश्विन) में काट लिया जाता है।
  • राजस्थान में उनालू (रबी) की खेती वह खेती है जिसमें कार्तिक में गेहूं, जौ आदि बुवाई करके चैत्र-वैशाख में काट लिया जाता है।
  • राजस्थान में दीपावली से पूर्व बोई गई खेती अगेती, अगावती व अंगातो कहलाती है और दीपावली के बाद मार्गशीर्ष माह में बोई गई खेती पछेती व पछांतो कहलाती है।
  • खेत जोतने से पहले खेत के झाड़-झंखाड़ साफ करने को सूड़ करना कहा जाता है।
  • राजस्थान में ईसबगोल, जीरा व टमाटर की खेती के लिए जालौर एवं सिरोही जिले प्रसिद्ध है। राज्य में धनिये की खेती बारां, कोटा, झालावाड़, बूंदी, सवाईमाधोपुर व जयपुर जिलों में की जाती है।
  • नागौर (ताउसर) पान मैथी (हरी मैथी) के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
  • राजस्थान में कोटा जिला मसाला उत्पादन में अग्रणी है।
  • भारत में हरित क्रांति का एम.एस. स्वामीनाथन के प्रयासों से 1966-67 में प्रारंभ हुई।
  • राजस्थान के डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर आदि जिलों में झूमिंग प्रणाली की वालरा खेती की जाती है।
  • राजस्थान राज्य सहकारी तिलहन उत्पादन संघ लिमिटेड (तिलम संघ) की स्थापना 1990 में की गई।
  • राज्य में तीन कृषि निर्यात क्षेत्र जोधपुर (ग्वार, मेहन्दी, मोठ, मसालों हेतु), कोटा (धनिया तथा औषधीय महत्व के पौधों हेतु) तथा गंगानगर में रसदार फल हेतु स्थापित किए गए हैं।

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