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राजस्थान में वनस्पति

राजस्थान में वनस्पति (Vegetation in Rajasthan)

राजस्थान में वनस्पति (Vegetation in Rajasthan)

वर्तमान में राजस्थान के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 9.54 प्रतिशत भाग पर वनस्पति है जबकि 1949-50 में यहां 13 प्रतिशत भाग पर वन थे।

सर्वप्रथम राष्ट्रीय वन नीति 1952 में घोषित की गई, जिसके अनुसार वनों के क्षेत्रफल को राज्य के 33.3 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया। 

राजस्थान में वनों को सर्वाधिक नुकसान ईंधन के लिए वन काटने से हुआ है।

राज्य के पश्चिमी भाग में वन, कांटेदार पेड़ों व झाड़ियों के रूप में हैं। 

राजस्थान का दक्षिणी-पूर्वी क्षेत्र घने जंगलों व वन्य जीवों की दृष्टि से समृद्ध है।

राजस्थान में वनों का वर्गीकरण-

  • राज्य में विभिन्न भागों में भूमि एवं जलवायु में भिन्नता के अनुसार वनस्पति में भी भिन्नता पाई जाती है।
  • राजस्थान में वनस्पति निम्नानुसार पायी जाती है-

1. शुष्क सागवान वन-

  •  ये वन सामान्यतः गहरी मिट्टी वाले पठारी क्षेत्रों व अरावली पर्वतमाला के ढालों में पाये जाते हैं।
  • सागवान के वृक्ष औसतन 500 मीटर की ऊंचाई तक मिलते हैं।
  • ये वन मुख्यत: दक्षिणी राजस्थान में बांसवाड़ा (सर्वाधिक), डूंगरपुर, चितौड़गढ़, उदयपुर व कोटा जिलों में पाये जाते हैं।
  • यहां 75 से 110 सेमी. वार्षिक वर्षा होती है।
  • राज्य के कुल वन क्षेत्र के 6.87 प्रतिशत भाग पर ये वन फैले हुए हैं।

 2. उष्ण कटिबंधीय (मिश्रित पतझड़) वन-

  • ये वन 50 से 80 सेमी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं।
  • ये वन अरावली पर्वतमाला में 770 मीटर की ऊंचाई तक मिलते हैं।
  • इन वनों में धोंकड़ा (धोंक), आम, बरगद, गूलर, नीम, तेंदू, बबूल, बहेड़ा, आंवला,बांस आदि वृक्ष पाए जाते हैं। राजस्थान में धोंकड़ा(धोंक) के वन सर्वाधिक है।

3.  उपोष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन-

  • ये वन आबू पर्वत में 1000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं। जहां वार्षिक वर्षा औसतन 150 सेमी. से अधिक रहती है।
  • इन वनों में मुख्यत: बांस, आम, सिरिस, जामुन, रोहिड़ा आदि के वृक्ष मिलते हैं।
  • ये वन राज्य के कुल वन क्षेत्र का 0.38 प्रतिशत भाग पर पाये जाते हैं।

4. शुष्क वन-

  • ये वन राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी भाग के मरूस्थलीय क्षेत्रों में पाये जाते हैं।
  • इस क्षेत्र में वर्षा की कमी के कारण प्राकृतिक वनस्पति बहुत ही कम पायी जाती है।
  • शुष्क वन क्षेत्र में खेजड़ी, रोहिड़ा, बैर, कैर, खजूर, फोग, थूहर, कींकर आदि वृक्ष एवं झाड़ियां पायी जाती है।
  • इस क्षेत्र में सेवण, धामण, मुराल आदि घास (मरू वनस्पति) भी पायी जाती है। खेजड़ी का वृक्ष राजस्थान में बहुत उपयोगी होने के कारण इसे राजस्थान का कल्पवृक्ष कहा जाता है।

5. खैर वन-

  • ये वन ज्यादातर राज्य के दक्षिणी-पूर्वी भाग में बारां, कोटा, बूंदी, झालावाड़ तथा अलवर जिलों में मिलते हैं।
  • ये राज्य के कुल वन क्षेत्र के लगभग 3 प्रतिशत भाग में पाये जाते हैं।
  • इस क्षेत्र में खैर के साथ घट बोर, धौक, झींझा, बीलपत्र तथा मैंडला के वृक्ष पाए जाते हैं।
  • खैर वनों को सेलेक्शन वन वर्ध्दन पद्धति से पनपाया जाता है।
  • कत्था खैर वृक्ष के तने से बनाया जाता है

6. धौंक वन- 

  • इन वनों की लकड़ी ईंधन के रूप में उपयोग की जाती है।
  • राजस्थान के कुल वन क्षेत्र के लगभग आधे (58.19%) भाग पर धौंक वन पाये जाते हैं।
  • ये वन मध्य समुद्र से 240 मीटर से 750 मीटर की ऊंचाई तक पाये जाते हैं।
  • ये वन बूंदी, चितौड़गढ़, सवाईमाधोपुर, धौलपुर, करौली, अलवर, जयपुर, अजमेर, पाली, जालौर व सिरोही जिलों में पाये जाते हैं।

 7. ढाक वन- 

  • ये वन राज्य के कुल वन क्षेत्र के 1.5 प्रतिशत भाग पर पाये जाते हैं। इन वृक्षों के फूलों से केसरिया रंग बनाया जाता है।

 वनों को कानूनी व प्रशासनिक दृष्टि से, रखरखाव की दृष्टि से तीन भागों में वर्गीकृत किया गया हैं-

  1. आरक्षित (संरक्षित) वन-  ये वन राज्य सरकार के पूर्ण नियंत्रण में होते हैं, जहां लकड़ी काटना और पशुओं को चराना पूर्ण रूप से प्रतिबंधित होता है। राजस्थान के कुल वन क्षेत्र के लगभग 38.16 प्रतिशत भाग पर ये वन पाये जाते हैं। इस प्रकार के वनों में सामान्य रूप से राष्ट्रीय उद्यान व वन्य जीव अभयारण्य आते हैं। राज्य में सर्वाधिक संरक्षित वन उदयपुर जिले में पाए जाते हैं।
  2. सुरक्षित या रक्षित वन- इस प्रकार के वनों पर राज्य सरकार का नियंत्रण होता है, लेकिन इन वनों को काटने और पशुओं को घास चराने की अनुमति समय-समय पर दे दी जाती है। सर्वाधिक सुरक्षित वन बारां जिले में पाए जाते हैं। ये वन राज्य के कुल वन क्षेत्र के लगभग आधे (53.36 प्रतिशत) भाग पर पाए जाते हैं।
  3. अवर्गीकृत वन- इस प्रकार के वनों पर राज्य सरकार का नियंत्रण नहीं होने के कारण यह वन अपना विकास एवं उन्नति नहीं कर पाते हैं। ये वन राज्य के कुल वन क्षेत्र के लगभग 8.48 प्रतिशत भाग पर पाए जाते हैं, जो मुख्यतया मरूस्थलीय जिलों में स्थित है।

घास

  • सेवण घास- जैसलमेर के उत्तर-पश्चिम में भुट्टेवाला (मोहनगढ़) एवं रामगढ़-जवाई का ताला क्षेत्रों में पाई जाने वाली पौष्टिक घास है जो मरुस्थल के विस्तार को रोकने में सहायक है। यह घास लाठी सीरीज क्षेत्र में पाई जाती है। इस घास का वैज्ञानिक नाम लसियुरूस सिडीक्रस है।
  • मोथा (लेमन) घास- यह सबसे सुगंधित घास है। यह घास घना पक्षी अभयारण्य में पक्षियों के भोजन का आधार है।
  • मोचिया साइप्रस रोटेन्डर्स- यह घास तालछापर अभ्यारण्य में पाई जाती है।
  • भरूत (सेन्फ्रस) घास- राजस्थान में पाई जाने वाली यह घास फैसलों में होने वाले मोल्या और जड़गांठ जैसे रोगों से होने वाले नुक़सान को रोकने में सक्षम है।
  • गाजर घास- अमेरिका से आयातित गेहूं के साथ इस घास के बीज भारत में आ गए। इस घास से जयपुर जिला सर्वाधिक प्रभावित है। इस घास को चर्म रोग एवं अस्थमा का वाहक माना जाता है
  • धामण(ट्राइडोक्स) घास-  यह घास मवेशियों की जीविका का मुख्य आधार है। यह घास दुधारू पशुओं के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है।
  • डाब-  नुकीले व धारदार पत्ते वाली यह घास ग्रहण के समय सूतक के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए खाद्य सामग्री के साथ घरों में रखी जाती है
  • खस घास- इस घास की जड़ों से सुगंधित तेल निकाला जाता है जो इत्र व शरबत बनाने में उपयोग किया जाता है। यह घास सवाईमाधोपुर, भरतपुर तथा टोंक जिलों में पाई जाती है।
  • पामारोजा व रोशाघास- तम्बाकू को सुगंधित बनाने के लिए इस घास के तेल का उपयोग किया जाता है।
  • बूर घास- बीकानेर में पाई जाने वाली इस घास से आसवन विधि द्वारा सुगंधित तेल प्राप्त किया जाता है। यह औषधीय महत्व की घास है। 

राजस्थान के वृक्ष व अन्य सामग्री

  • बांस- राज्य के कुल वन क्षेत्र का 2.5 प्रतिशत भाग में बांस पाए जाते हैं। बांस उदयपुर, चितौड़गढ़, बारां वन मंडलों तथा आबू पर्वत पर मिलते हैं। बांस को आदिवासियों का हरा सोना कहा जाता है।
  • महुआ- इस पौधे के फूलों से देशी शराब बनाई जाती है। ये वृक्ष सिरोही, डूंगरपुर, उदयपुर व बांसवाड़ा जिलों में पाए जाते हैं।
  • कत्था- खैर वृक्ष के तने की छाल से बनाया जाता है। कत्थे के प्रमुख उत्पादक जिले उदयपुर, झालावाड़ तथा चितौड़गढ़ है।
  • सालर वृक्ष- इस वृक्ष की लकड़ी का उपयोग सामान पैकिंग करने में किया जाता है। ये वृक्ष सिरोही, उदयपुर, जोधपुर, अजमेर व जयपुर जिलों में पाए जाते हैं।
  • खींप- झाड़ीनुमा इस पौधे के खींपोली नामक फलियां लगती है।
  • एलोवेरा-  यह लिली प्रजाति का औषधीय पादप है जिसका प्रचलित नाम देशी ग्वार पाठा ( संस्कृत नाम- धृतकुमारी) है।
  • हींग- प्रतापगढ़ जिले की सर्वाधिक प्रसिद्ध हींग Ferula Assafoetida नामक झाड़ी की जड़ के रस से प्राप्त की जाती है।
  • गोंद- चौहटन (बाड़मेर) क्षेत्र का गोंद विश्व प्रसिद्ध है।
  • फोग- यह एक झाड़ी है इसके फूलों से फटका साग बनाया जाता है। इसके फूलों का स्थानीय नाम बाड़ीयो है।
  • राजस्थान की वन सम्पदा और पेड़-पौधों का सर्वप्रथम अन्वेषण 1832 में किया गया।
  • सवाई तेजसिंह ने 1947 में फोरेस्ट सेटलमेंट पुनरीक्षण पुस्तक (पीली किताब) तैयार करवाई।
  • स्मृति वन- झालाना (जयपुर) में स्थित वन क्षेत्र जिसका नाम 2006 में बदलकर श्री कर्पूर चन्द्र कुलिश स्मृति वन किया गया।
  • राज्य में कार्यशील जनसंख्या का 0.4 प्रतिशत भाग रोजगार की दृष्टि से वन सम्पदा पर निर्भर है।
  • राज्य में प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र 0.06 प्रतिशत है।
  • राजस्थान में सर्वाधिक वन सम्पदा (वनस्पति) वाला जिला उदयपुर है यहां जिले के कुल भू-भाग का 30.86 प्रतिशत और राज्य के कुल वन क्षेत्र का 14.06 प्रतिशत भाग पर वन है।
  • राज्य में न्यूनतम वन क्षेत्र वाला जिला चुरू है यहां जिले के कुल भू-भाग का 0.42 प्रतिशत भाग और राज्य के कुल वन क्षेत्र का 0.22 प्रतिशत भाग पर वन है।
  • राज्य में कुल प्रादेशिक मण्डलो की संख्या 42 है तथा वन मण्डल 13 हैं।
  • जोधपुर क्षेत्रफल की दृष्टि से राज्य का सबसे बड़ा वन मण्डल है।
  • उदयपुर राज्य का सर्वाधिक वन क्षेत्र वाला वन मण्डल है।
  • राज्य वृक्ष खेजड़ी थार का कल्पवृक्ष कहलाता है। खेजड़ी राज्य में वन क्षेत्र के लगभग 65 प्रतिशत भाग में पाए जाते हैं।

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