राजस्थान की नदियां (Rivers of Rajasthan)
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- राज्य के लगभग 60 प्रतिशत भाग पर आंतरिक प्रवाह प्रणाली पायी जाती है।
- चुरू और बीकानेर ऐसे दो जिले है जहां कोई नदी नहीं बहती है।
- राज्य में केवल चम्बल तथा माही बारहमासी नदियां हैं।
- सर्वाधिक जिलों में बहने वाली नदियां चम्बल, बनास व लूनी है जो छः जिलों में बहती हैं।
- राजस्थान की नदियों को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा गया है- (1) बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां- चम्बल, बनास, बेड़च, बाणगंगा, कोठारी, कालीसिंध, खारी, गम्भीरी, पार्वती। (2) अरब सागर में गिरने वाली नदियां- माही, सोम, जाखम, लूनी, साबरमती, सूकड़ी। (3) आन्तरिक प्रवाह की नदियां- घग्घर, कान्तली, काकनी, साबी, मंथा।
1. बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां
चम्बल
- उपनाम- चर्मण्वती, कामधेनु तथा नित्यवाही नदी।
- उद्गम स्थल- मध्यप्रदेश के महु के दक्षिण में मानपुर के समीप जनापाव पहाड़ी (विंध्याचल पर्वत) से निकलती हैं।
- यह चौरासीगढ़ (चितौड़गढ़) के समीप राजस्थान में प्रवेश करती हैं।
- आगरा (उत्तरप्रदेश) के इटावा के निकट मुरादगंज नामक स्थान पर यमुना में मिल जाती हैं।
- इस नदी की कुल लम्बाई 966 किमी. है जिसमें से 135 किमी. राजस्थान में हैं।
- यह राज्य में अपवाह क्षेत्र (19,500 किमी.) के अनुसार बहने वाली, सबसे अधिक लम्बी नदी है। जो राजस्थान के साथ सबसे अधिक लम्बी अन्तर्राज्यीय सीमा बनाती हैं।
- चूलिया जल प्रपात- भैंसरोड़गढ़ (चितौड़गढ़) के समीप चम्बल में सर्वप्रथम बामनी नदी आकर गिरती है जहां पर चूलिया जल प्रपात (ऊंचाई 18 मीटर) स्थित है।
- केशोरायपाटन (बूंदी) के पास इसका पाट अधिकतम एवं गहराई भी अधिक है।
- रामेश्वरम (सवाई माधोपुर) स्थान पर चम्बल नदी के बाएं किनारे पर बनास और सीप नदियों का संगम होता है जो त्रिवेणी संगम कहलाता है।
- यह राजस्थान की बारहमासी नदी है एवं इससे सर्वाधिक अवनालिका अपरदन होता है।
- इस नदी पर मध्यप्रदेश में गांधी सागर बांध, चितौड़गढ़ में राणा प्रतापसागर बांध, कोटा में जवाहर सागर बांध और कोटा बैराज/कोटा बांध स्थित है जो जल विद्युत और सिंचाई के मुख्य स्त्रोत हैं।
- राज्य को सर्वाधिक सतही जल चम्बल नदी से प्राप्त होता है।
- यह नदी चितौड़गढ़, कोटा, बूंदी, सवाईमाधोपुर, करौली और धौलपुर जिलों में प्रवाहित होती हैं।
चम्बल की सहायक नदियां-
- चम्बल दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर बहने वाली राजस्थान की सबसे प्रमुख व एकमात्र नदी है जिसकी सर्वाधिक सहायक नदियां हैं।
- मध्यप्रदेश में मिलने वाली नदियां- सीवान, रेटम व शिप्रा।
- बामनी (ब्राह्मणी) – यह चितौड़गढ़ जिले के हरिपुरा गांव की पहाड़ियों से निकलती हैं तथा भैंसरोड़गढ़ के समीप चम्बल नदी में मिल जाती हैं।
- गुजाली- यह मध्यप्रदेश के जाट गांव के पास से निकलकर चितौड़गढ़ के अरनिया गांव के पास चम्बल में मिल जाती हैं।
- ईज नदी- भैंसरोड़गढ़ से निकलकर डाबी स्थान पर चम्बल में मिल जाती हैं।
- मेज नदी- भीलवाड़ा जिले से निकलकर बूंदी में बहती हुई सीनपुर के निकट चम्बल में मिल जाती हैं।
- चाकण नदी- यह बूंदी में कई छोटे-छोटे नालों से मिलकर बनती है जो सवाईमाधोपुर के करनपुरा गांव में चम्बल में मिल जाती हैं। जिस पर नैनवा (बूंदी) में चाकण बांध बना हुआ है।
- अन्य सहायक नदियां- बनास, कालीसिंध, छोटी कालीसिंध, पार्वती, कुराल, परवन, निमाज आदि।
बनास नदी
- उपनाम- वन की आशा, वर्णनाशा व वशिष्टी।
- उद्गम स्थल- खमनौर की पहाड़ियां (कुम्भलगढ़), राजसमंद।
- कुल लम्बाई- 480 किमी.।
- यह नदी राजसमंद, चितौड़गढ़, भीलवाड़ा, अजमेर, टोंक तथा सवाईमाधोपुर जिलों में बहती हुई सवाईमाधोपुर जिले के रामेश्वरम नामक स्थान पर चम्बल में मिल जाती है।
- बनास नदी टोंक जिले में सर्पाकार बहती हैं।
- त्रिवेणी संगम- बीगोद और मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) के बीच बनास,बेड़च,मेनाल नदियों का संगम होता है।
बनास की सहायक नदियां-
- टोंक जिले में देवली नामक स्थान पर बनास नदी में खारी नदी आकर गिरती हैं।
- मेनाल नदी मांडलगढ़ की पहाड़ियों (भीलवाड़ा) से निकलती है।
- मोरेल नदी का उद्गम स्थल चाकसू (जयपुर) से होता है। जयपुर व सवाईमाधोपुर की सीमा पर बहते हुए खण्डार के पास बनास नदी में मिल जाती है। मोरेल नदी की सहायक नदी ढूंढ है।
- बीसलपुर बांध- बनास नदी पर टोंक जिले के टोडारायसिंह तहसील के बीसलपुर गांव में इस बांध का निर्माण विग्रहराज चतुर्थ ने करवाया। पेयजल की दृष्टि से बीसलपुर बांध राजस्थान का सबसे बड़ा बांध है।
- यह नदी पूर्णतः राजस्थान में बहने वाली सबसे लंबी नदी है।
- अन्य सहायक नदियां- कोठारी, खारी,बेड़च, मेनाल,माशी व मोरेल।
कोठारी नदी
- उद्गम स्थल- दिवेर की पहाड़ियां (कुम्भलगढ़, राजसमंद)।
- समापन- भीलवाड़ा में बनास नदी में।
- इस नदी पर मेजा बांध बनाकर भीलवाड़ा जिले की पेयजल समस्या का समाधान करने का प्रयास किया गया है।
बेड़च नदी
- उद्गम स्थल- गोगुंदा की पहाड़ियां (उदयपुर)।
- यह नदी अपने उद्गम स्थल से उदयसागर झील तक आयड़ नदी के नाम से जानी जाती है उदयसागर से निकलने के बाद यह नदी बेड़च के नाम से जानी जाती हैं।
- यह नदी मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) के निकट बिगोद नामक स्थान पर बनास में मिल जाती है।
- बेड़च नदी के किनारे आयड़ (ताम्रयुगीन) सभ्यता मिली है।
कालीसिंध नदी
- उद्गम स्थल- मध्यप्रदेश के देवास जिले के बागली गांव से।
- इस नदी का राजस्थान में प्रवेश झालावाड़ में एवं समापन कोटा के नौनेरा नामक स्थान पर चम्बल नदी में मिलने से होता है।
- यह नदी राज्य में झालावाड़, कोटा एवं बारां की सीमा बनाती है।
- गागरोन का किला आहू व कालीसिंध नदियों के संगम पर स्थित है।
- सहायक नदियां-
- आहू नदी- यह मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले की महिन्दपुर तहसील से निकलकर झालावाड़ की पश्चिमी दिशा से नंदपुर में प्रवेश करती है। गागरोन के पास कालीसिंध में मिल जाती है।इसकी सहायता नदियां क्यासरी व पिपलाज है।
- सामेला- आहू व कालीसिंध नदियों का संगम स्थल।
- अन्य सहायक नदियां- रेवा व परवन है।
पार्वती नदी
- उद्गम स्थल- मध्यप्रदेश के विंध्याचल पर्वत की सिहोर की पहाड़ियां।
- पार्वती बांध- धौलपुर जिले में पार्वती नदी पर निर्मित बांध।
- करियाहट (बारां) में राजस्थान में प्रवेश करती है।
- समापन- कोटा जिले में चम्बल नदी में मिल जाती है।
बाणगंगा नदी
- उद्गम स्थल- जयपुर जिले की बैराठ की पहाड़ियों से।
- उपनाम- अर्जुन की गंगा, तालाबंदी।
- समापन- आगरा के फतेहाबाद नामक स्थान पर यमुना नदी में मिल जाने पर। इस नदी पर जमवारामगढ़ (जयपुर) में रामगढ़ बांध बनाया गया है जिससे जयपुर को पेयजल की आपूर्ति होती है।
- बाणगंगा नदी कभी-कभी आन्तरिक प्रवाह प्रणाली का उदाहरण पेश करती है क्योंकि इसका पानी भी यमुना तक नहीं पहुंचती है और भरतपुर के आसपास के मैदानों में फैल जाता है। बाणगंगा चम्बल की रुण्डित नदी है।
खारी नदी
- उद्गम स्थल- राजसमंद के बिजराल गांव की पहाड़ियों से।
- समापन- टोंक जिले के देवली नामक स्थान पर बनास में मिल जाती है।
- भीलवाड़ा जिले की शाहपुरा तहसील में मानसी नदी खारी नदी में मिलती है। मानसी नदी भीलवाड़ा जिले की मांडल तहसील से निकलती है। यह नदी राजसमंद, भीलवाड़ा, अजमेर तथा टोंक जिले में प्रवाहित होती है।
गम्भीरी नदी
- इस नदी पर निम्बाहेड़ा (चितौड़गढ़) में गम्भीरी बांध बनाया गया है।
- समापन- चितौड़गढ़ के चटियावली नामक स्थान पर बेड़च में।
सोहदरा नदी
- उद्गम स्थल- अजमेर जिले के दक्षिण में स्थित अराय गांव की पहाड़ियों से।
- समापन- टोंक जिले में दूदिया गांव के पास माशी नदी में।
- यह नदी टोरड़ी सागर बांध को भरती है।
कुनु नदी
- उद्गम स्थल- गुना शहर (मध्यप्रदेश)।
- राज्य की एकमात्र नदी जो बारां जिले में स्थित मुसेड़ी गांव व कोटा जिले में स्थित गोवर्धनपुरा गांव में दो बार प्रवेश करती है।
2. अरब सागर में गिरने वाली नदियां
- ये नदियां सामान्यतः अरावली के दक्षिण-पश्चिम में बहती हुई अपना जल अरब सागर में ले जाती है।
माही नदी
- उपनाम- दक्षिणी राजस्थान की स्वर्ण रेखा, बांगड़ व कांठल की गंगा, आदिवासियों की गंगा।
- उद्गम स्थल- मध्यप्रदेश में धार जिले के सरदारपुरा के निकट विंध्याचल की पहाड़ियों में स्थित मेहद झील से।
- राजस्थान में प्रवेश- खांदू गांव (बांसवाड़ा) के निकट। यह नदी तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान व गुजरात में बहती है।
- समापन- गुजरात में खम्भात की खाड़ी में। गुजरात में इस नदी का प्रवेश पंचमहल जिले में रामपुर के पास।
- त्रिवेणी संगम- यह नदी डूंगरपुर जिले में बेणेश्वर नामक स्थान पर सोम और जाखम नदियां मिलकर त्रिवेणी संगम बनाती है। इस स्थान पर माघ पूर्णिमा को मेला भरता है।जिसे आदिवासियों का कुंभ कहा जाता है।
- कुल लम्बाई- 576 किमी. है जबकि राजस्थान में इसकी लम्बाई 171 किमी. है।
- राज्य के बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ में बहने वाली यह नदी डूंगरपुर व बांसवाड़ा के मध्य प्राकृतिक सीमा बनाती है।
- यह नदी दक्षिणी राजस्थान में मध्य माही का मैदान बनाती है जिसे छप्पन का मैदान कहा जाता है।
- यह नदी कर्क रेखा को दो बार काटती है।
- बांसवाड़ा के लोहारिया गांव के निकट माही बजाज सागर बांध एवं कागदी पिकअप बांध बोरखेड़ा स्थान तथा कडाना बांध गुजरात के पंचमहल जिले में निर्मित है।
- सहायक नदियां-
- सोम नदी- उद्गम स्थल- उदयपुर जिले की बीछामेड़ा की पहाड़ियां।समापन- डूंगरपुर में माही नदी में। इसकी सहायक नदियां जाखम, गोमती व सारनी।
- जाखम नदी- यह नदी प्रतापगढ़ जिले में छोटी सादड़ी के निकट भंवरमाता की पहाड़ियों से निकलती है।समापन- धरियावद (प्रतापगढ़) में सोम नदी में।जाखम बांध- छोटी सादड़ी में जाखम नदी पर निर्मित बांध।
- अन्य सहायक नदियां- मोरन, ऐराव,चाप, अन्नास व इरू।
लूनी नदी
- उपनाम- आधी मिठी और आधी खारी नदी, मारवाड़ की जीवन रेखा, लवणवती तथा मरूस्थल की गंगा।
- उद्गम स्थल- नाग पहाड़, अजमेर।
- यह नदी अजमेर, नागौर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर तथा जालौर जिलों में बहती हुई गुजरात में प्रवेश कर कच्छ के रण में विलीन हो जाती है।
- अरावली के पश्चिम में बहने वाली प्रमुख नदी जिसका पानी बालोतरा (बाड़मेर) के बाद खारा हो जाता है।
- कुल लम्बाई- 330 किमी.।
- महाकवि कालिदास ने लूनी को अंत: सलिला कहा है।
- मरुस्थलीय क्षेत्र की एकमात्र समन्वित जल प्रवाह प्रणाली है।
- पश्चिमी राजस्थान की सबसे लंबी नदी।
- उद्गम स्थल से इसका नाम सागरमती बाद में सरस्वती और अन्त में लूनी नदी हो जाती है।
- सहायक नदियां-
- जवाई नदी- बाली (पाली) के निकट गोरियां गांव। समापन- बालोतरा (बाड़मेर) में लूनी नदी में। पाली में इस नदी पर जवाई बांध बनाया गया है।
- सूकड़ी नदी- यह नदी अरावली से निकलकर पाली तथा जालौर जिलों में बहती हुई माजल-बरवा के निकट बाड़मेर जिले में प्रवेश करती है। समदड़ी के पास बाड़मेर में लूनी नदी में मिल जाती है।
- मीठड़ी नदी- यह नदी पाली की अरावली की पहाड़ियों से निकलकर बाड़मेर जिले में मंगला नामक स्थान के पास लूनी नदी में मिलती है।
- लीलड़ी नदी- पाली की अरावली की पहाड़ियों से निकलकर निम्बोल नामक स्थान के पास लूनी नदी में मिल जाती है।
- जोजड़ी नदी- नागौर जिले के पोंडलू गांव की पहाड़ियों से निकलकर जोधपुर में दक्षिण-पश्चिम में बहती हुई बाड़मेर जिले के सीवाना नामक स्थान पर लूनी नदी में मिल जाती है। यह नदी अरावली श्रेणी से नहीं निकलती है तथा लूनी नदी में पश्चिम दिशा (दायीं ओर) से मिलने वाली एकमात्र नदी है।
- बाडी नदी- यह नदी पाली जिले से निकलकर जोधपुर जिले की सीमा पर लूनी नदी में मिलती है।
साबरमती नदी
- उद्गम स्थल- उदयपुर जिले की कोटड़ी गांव की दक्षिणी-पश्चिमी अरावली पहाड़ियां।
- समापन- खम्भात की खाड़ी में (अधिकतर प्रवाह क्षेत्र गुजरात में)।
- गुजरात के गांधीनगर एवं अहमदाबाद शहर इसी नदी के तट पर बसे हुए हैं।
- राजस्थान से निकलकर गुजरात जाने वाली साबरमती नदी पर देवास प्रथम एवं देवास द्वितीय नामक दो बांध बनाये गए हैं। इन बांधों का पानी सुरंग के द्वारा उदयपुर की झीलों में पहुंचेगा।
- सहायक नदियां- मेस्ता, वेतरक, हथमती, वाकल व जाजम।
पश्चिमी बनास
- उद्गम स्थल- सिरोही जिले के नया सनवारा गांव की पहाड़ियों से।
- समापन- कच्छ की खाड़ी में।
- सिपू नदी- पश्चिमी बनास की सबसे महत्वपूर्ण सहायक नदी है। आबू रोड (सिरोही) एवं गुजरात का डिसा शहर सिपू नदी के किनारे स्थित है।
3. आंतरिक प्रवाह की नदियां
- ये नदियां अपना जल किसी समुद्र में नहीं ले जाती है और न ही इनकी कोई सहायक नदियां होती है तथा ये कुछ भू-भाग पर प्रवाहित होकर विलीन या विलुप्त हो जाती है।
- राज्य के लगभग 60 प्रतिशत भू-भाग पर आंतरिक प्रवाह प्रणाली पाई जाती है।
घग्घर नदी
- उपनाम- प्राचीन सरस्वती या द्रष्द्वती नदी, मृत नदी, सोतरा नदी, राजस्थान का शोक।
- यह नदी वैदिक संस्कृति की सरस्वती नदी के पेटे में बहती है।
- यह राजस्थान में आंतरिक प्रवाह की सबसे लंबी नदी है।
- उद्गम स्थल- कालका के पास हिमालय की शिवालिक पहाड़ियां (शिमला, हिमालय प्रदेश)।
- राजस्थान में प्रवेश- हनुमानगढ़ जिले की टिब्बी तहसील के तलवाड़ा नामक स्थान पर।
- किसी समय घग्घर नदी उफान पर होती तो तलवाड़ा, अनूपगढ और सूरतगढ़ होती हुई भारत पाकिस्तान सीमा को पार कर फोर्ट अब्बास (पाकिस्तान) तक चली जाती थी एवं यहां यह हकरा नाम से जानी जाती थी।
- हनुमानगढ़ में स्थित भटनेर दुर्ग घग्घर नदी के तट पर स्थित है।
- नाली- हनुमानगढ़ में घग्घर नदी के पाट को नाली कहा जाता है।
- कालीबंगा- सिंधु घाटी सभ्यता का प्रमुख केन्द्र इस नदी के किनारे स्थित है।
काकनी नदी
- उपनाम- मसूरदी/काकनेय।
- उद्गम स्थल- कोटारी (जैसलमेर)
- बुझ झील- काकनी नदी जैसलमेर में इस झील का निर्माण करती है।
कांतली नदी
- उद्गम स्थल- खण्डेला की पहाड़ियां (सीकर)।
- तोरावाटी- इस नदी का बहाव क्षेत्र।
- समापन- झुंझुनूं-चुरू की सीमा पर।
- सीकर में स्थित गणेश्वर सभ्यता का विकास इस नदी के तट पर हुआ।
साबी नदी
- उद्गम स्थल- जयपुर व सीकर की सीमा पर स्थित सेवर की पहाड़ियों से निकलकर अलवर में प्रवाहित होकर पटौदी के मैदान में विलीन हो जाती है।
मंथा नदी
- उद्गम स्थल- मनोहरपुर (जयपुर)।
- समापन- सांभर झील।
रुपारेल नदी
- उद्गम स्थल- अलवर जिले में थानागाजी तहसील की उदयनाथ पहाड़ियों से।
- सरिस्का क्षेत्र तथा अलवर के दक्षिण में बहती हुई भरतपुर जिले में गोपालगढ़ के निकट प्रवेश करती है।
- यह नदी भरतपुर जिले में विलुप्त हो जाती है।
- इसे वराह तथा लसवारी भी कहा जाता है।
महत्वपूर्ण तथ्य
- अरावली के उत्तर-पश्चिम भाग में अधिकतर आंतरिक जल प्रवाह प्रणाली पाई जाती है।
- राजस्थान में भारत के कुल सतही जल का मात्र 1.16% ही है।
- राज्य की दक्षिणी-पूर्वी नदियां बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
- राज्य में सर्वाधिक नदियां कोटा संभाग में प्रवाहित होती है जबकि न्यूनतम नदियों वाला संभाग बीकानेर है।
- चितौड़गढ़ जिले में सर्वाधिक नदियां बहती हैं जबकि बीकानेर व चुरू जिलों में कोई नदी नहीं बहती है।